HANUMAN CHALISA FOR DUMMIES

hanuman chalisa for Dummies

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“Disorders will probably be ended, all pains might be gone, when a devotee consistently repeats Hanuman the courageous’s identify.”

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Property of Tulsidas about the banking institutions of River Ganga Tulsi Ghat Varanasi wherever Hanuman Chalisa was composed, a small temple can be Situated at This website Tulsidas[11] (1497/1532–1623) was a Hindu poet-saint, reformer and philosopher renowned for his devotion for Rama. A composer of several preferred will work, He's finest known for remaining the writer of the epic Ramcharitmanas, a retelling with the Ramayana inside the vernacular Awadhi language. Tulsidas was acclaimed in his life span for being a reincarnation of Valmiki, the composer of the initial Ramayana in Sanskrit.[12] Tulsidas lived in the city of Varanasi until eventually his death.

तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥ आपन तेज सह्मारो आपै ।

We imagine it doesn’t actually make a difference providing your heart is filled with devotion, your head is pure and you have maintained superior hygiene criteria in the course of the period of chanting, reading or reciting.

व्याख्या — श्री हनुमन्तलाल जी समग्र विद्याओं में निष्णात हैं और समस्त गुणों को धारण करने से ‘सकल–गुण–निधान’ हैं। वे श्री राम के कार्य सम्पादन हेतु अत्यन्त आतुरता (तत्परता, व्याकुलता) का भाव रखने वाले हैं। क्योंकि ‘राम काज लगि तव अवतारा’ यही उद्घोषित करता है कि श्री हनुमान जी के जन्म का मूल हेतु मात्र भगवान् श्री राम के हित कार्यों का सम्पादन ही है।

महाभारत काल से दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिर

सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया - भजन

BhīmaBhīmaFrightening rūpaRūpaForm / entire body / shape DhariDhariAssuming asuraAsuraDemon samhāreSamhāreDestroy / eliminate

भावार्थ – आपकी इस महिमा को जान लेने के बाद कोई भी प्राणी किसी अन्य देवता को हृदय में धारण न करते हुए भी आपकी सेवा से ही जीवन का सभी सुख प्राप्त कर लेता है।

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।

व्याख्या – श्री शंकर जी के साक्षी होने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्री सदाशिव की प्रेरणा से ही श्री तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा की रचना की। अतः इसे भगवान शंकर का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिये यह श्री हनुमान जी की सिद्ध स्तुति है।

यहाँ हनुमान जी के स्वरूप की तुलना सागर से की गयी। सागर की दो विशेषताएँ हैं – एक तो सागर से भण्डार का तात्पर्य है और दूसरा सभी वस्तुओं की उसमें परिसमाप्ति होती है। श्री हनुमन्तलाल जी भी ज्ञान के भण्डार हैं और इनमें समस्त गुण समाहित हैं। किसी विशिष्ट व्यक्ति का ही जय–जयकार किया जाता है। श्री हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य, सकल गुणों के निधान तथा तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं, अतः यहाँ उनका more info जय–जयकार किया गया है।

भावार्थ– आपने अत्यन्त लघु रूप धारण कर के माता सीता जी को दिखाया और अत्यन्त विकराल रूप धारण कर लंका नगरी को जलाया।

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